बुधवार, 15 अप्रैल 2015

paarijat




11.पारिजात

बाराबंकी जिले का किन्तूरनगर ,कुन्तीश्वर मंदिर एवं कल् व्रक्ष [पारिजात]

हमारे पूर्वाग्रहों के कारण इतिहास की बहुत सी बातें परदे के पीछे छिपी रह जाती है। जब आपसे कोई लखनउ के नामकरण के बारे में जानना चाहेगा तब आप कहेंगे कि दशरथ पुत्र लखन के नाम पर लखनपुरी बसाई गई और उसी का बिगडा हुआ रूप लखनउ है बहराइच के नामकरण की बात चलेगी तब आप कहेंगे कि ब्रम्हा जी ने यहां पर तप किया था , ब्रम्हाइच का बिगडा हुआ रूप बहराइच है। जबकि सत् यह है कि लखन भर के नाम पर लखनपुरी बसाई गई और उसका बिगडा रूप लखनउ है। वीर लडाकू भर जाति के नाम पर भरराइच , भराइच ,बहराइच नगर बसा है। लेकिन क्या करें हमारी पौराणिक सोच खींचतान कर पौराणिक पात्रों से साम्यता स्थापित कर ही देती है।
ऐसा ही कुछ बाराबंकी जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर स्थित किन्तूर नगर[ किन्तौर, कुन्तौर ] कुन्तीश्वर मन्दिर एवं पारिजात पेड के विषय में पूर्वाग्रहों का सहारा लिया गया है। किन्तूर बाराबंकी जिले की सिसौली गौसपुर तहसील में स्थित है। कुछ समाचार पत्रों में किन्तूर मन्दिर का रहस् बताते हुए छापा गया है कि शिवलिंग को सबसे पहले कुन्ती ही पूजती है। समाचारपत्रों में कहा गया है कि पाण्डव जननी कुन्ती अज्ञातवास के समय यहां ठहरी थीं। भगवान शंकर को प्रसन् करने के लिए उन्होंने इस मन्दिर की स्थापना कराई थी इसी लिए इस मन्दिर का नाम कुन्तीश्वर मन्दिर पडा, तथा नगर का नाम किन्तूर पडा एक दो किलोमीटर दूर स्थित कल् ब्रक्ष के विषय में भी यही कल्पना की गई है कि इस पारिजात का रोपण अर्जुन ने अपनी माता कुन्ती के नाम पर किया थ।

उपरोक् बातें बिलकुल निराधार हैं। सत् तो यह है कि किन्तूर,[ किन्तौर, कुन्तीरनगर] भर शासक महाराजा बारा ने अपनी महारानी कुन्ता जिनका नाम कहीं कहीं किन्तमा या कुन्तमा लिखा है के नाम पर बसाया था। बाराबंकी का नामकरण भी भर शासक महाराजा बारा के नाम पर किया गया है। भर,राजभरशासक महाराजा बारा ने 872 ईस्वी से 912 ईस्वी तक बाराबंकी साम्राज् पर शासन कियाा सन 912 ईस्वी में राष्टकूट वंश के राजा क्रष् द्वितीय ने भर राजभर शासक महाराजा बारा को पराजित किया।
भर शासक महाराजा बारा की महारानी राजभर कुल गौरव [ किनतमा, कुन्तमा ] ने 912 ईस्वी से 915 ईस्वी तीन वर्ष तक बराबंकी साम्राज् को सम्हाले रखा। भर महारानी कुन्ता ने ही शिव को प्रसन् करने के लिए शिव मन्दिर बनवाया था। आज भी भर महारनी कुन्ता सर्वप्रथम भगवान शिव की पूजा करने जाती हैं। जब वे पूजा करती हैं तब उपस्थित अन् प्राणी तन्द्रा निद्रा ग्रस् हो जाते हैं। सन 915 ईस्वी में प्रतिहार वंश के महेन्द्रपाल ने कुन्ता साम्राज् पर आक्रमण कर दिया कुन्तौर में भयंकर युद्ध हुआ राजभर महारनी कुन्ता पराजित हो गईं और उनका कत् कर दिया गया।
जहां पर भर महारानी कुन्ता की टकसाल थी वहां उन्होंने पारिजात या कल् ब्रक्ष का रोपण किया था। इस अदभुत व्रक्ष [पारिजात ]की गोलाई पचास फीट तथा उंचाई पैंतालीस फीट है। वनस्पति शास्त्रियों ने इस व्रक्ष [पारिजात ] की आयु एक हजार वर्ष आंकी है। विज्ञ पुरूष ही बताएं कि वह पारिजात जिसकी आयु मात्र एक हजार वर्ष आंकी गई है , कुन्ती पुत्र अर्जुन द्वारा रोपित कैसे हो सकता है ? भारतीय डाकतार विभाग ने 4 मार्च सन 1997 को इस पारिजात व्रक्ष पर पांच एवं छह रूपये के दो डाक टिकट जारी किये थे , जिन्हें उत्तरप्रदेश के महामहिम राज्यपाल श्री रोमेश भण्डारी ने जारी किए थे। यह खबर भी छापी गई थी कि इस पारिजात को माता कुन्ती के नाम पर अर्जुन ने लगाया था। यह धारणा पूर्णतह निराधार है।
बाराबंकी नरेश बारा , बाराबंकी महारानी कुन्ता और कुन्तीनगर आदि के विषय में साक्ष् के लिए गजेटियर आफ दी प्रवेविन्सेस आफ अवध वाल्यूम 2 [ 1878] पेज 112 , आन दी ओरिजिनल इनहेविटेन् आफ भारतवर्ष आर इण्डिया पेज 39-40 गुस्तव ओपर्ट ,अवध गजेटियर पेज 255 आदि का अध्ययन किया जा सकता है
[ लेखक' आचार्य शिवप्रसादसिंह राजभर ''राजगु:रू'']
POSTED ON FACEBOOK
BY- कैलाश नाथ राय भरतवंशी
FACEBOOK ADDRESS.-  kailashnathrai0023@gmail.com

2 टिप्‍पणियां: