श्रावस्ती नरेश सुहेलदेव पासी नहीं, भर थे /
[लेखक -श्री यशवंत श्रीवास्तव , स्वतंत्र भारत लखनऊ ,८ अगस्त १९९६]
[ श्री श्रीवास्तव जी के इस लेख को सभी राजभर बंधू ध्यान से धैर्य
पूर्वक अवश्य पढ़ें एवं अधिक से अधिक शेयर करें --
निवेदक -आचार्य शिवप्रसाद सिंह राजभर ''राजगुरु'']
पाश्चात्य इतिहासकार एलफिंस्टन तथा कावेल ने भारत के इतिहास को अपूर्ण तथा अक्रमिक बताया है / भारतीय इतिहासकार सी ,एन,अय्यर ने कहा है कि भारत के गौरवपूर्ण कार्यों के लिए विश्व के लोग अनभिग्य हैं
/ भारतीय इतिहास के अपूर्ण तथा अक्रमिक होने के बहुत से कारण हैं / सर्वप्रथम जागरूकता का अभाव
रहा है / प्राचीनकाल
में यहाँ लेखन कार्य ब्राह्मण वर्ग के जिम्मे था / इस वर्ग
का लेखन क्षेत्र दर्शन ,कला ,काव्य ,विज्ञानं तक सीमित हुआ करता था / इतिहास लिखने की आवश्यकता उन्होंने महसूस
नहीं की थी / विदेशी
संपर्क में आने पर भारत की प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों की छान बीन हुई / तदनुसार इतिहास का जो स्वरुप स्पष्ट हुआ ,उसमें भी अनेक विसंगतियां थीं / अनेक
प्राप्त पौराणिक ग्रंथों से प्राचीनकाल के शासकों ,उनकी वंशावलियों ,उनकी शासन व्यवस्था
आदि का परिचय मिलता है ,किन्तु मतों में भिन्नता होने से और तथ्यों के
भ्रामक होने से उनकी ग्राह्यता में संदेह होता है / दूसरी ओर समय समय पर चन्द अमर्यादित व
स्वार्थी तत्वों ने अपने सामाजिक ,आर्थिक ,तथा राजनैतिक लाभ के लिए भी
ऐतिहासिक तथ्यों एवं
प्रमाणों से छेड़छाड़ की / इन तत्त्वों ने इतिहास का विकृत रूप ही प्रस्तुत किया है / भारतीय इतिहास के अपूर्ण तथा अक्रमिक होने का यह भी एक कारण रहा है /
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी ऐसे तत्वों ने इतिहास
पर कुठाराघात करने का कोई मौका नहीं गंवाया / यद्यपि ऐसा करने वालों को इतिहास स्वयं
कभी माफ़ नहीं करेगा ,तथापि ये तत्व अपनी अवसरवादिता के कारण जनता में कुछ गलतफहमियां तो पैदा कर ही जाते हैं / राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे कार्यों में अग्रणी हैं / वोट बैंक बढ़ाने के एक मात्र उद्देश्य की वजह से वे दल कुछ का कुछ कर जाते हैं /
ऐसा ही ये राजनैतिक दल भर शासकों को पासी शासक बताकर उनके प्रति प्रतिवद्धता तथा अतिशय प्रेम दिखाकर पासी बिरादरी को अपने साथ जोड़ने की होड़ में लगे
हैं / पहले
समाजवादी पार्टी तथा
बहुजन समाज पार्टी ने भर शासक बिजली जैसे वीर योद्धा को पासी शासक बताया ,वहीँ दूसरी
ओर बहराइच के शासक रहे भर राजा सुहेलदेव को विहिप पासी राजा बता रही है / राजा सुहेलदेव भर शासक थे / इसका प्रमाण प्रस्तुत करने से
पहले भर जाति के बारे में जानना प्रासंगिक होगा /
डा
, नर्मदेश्वर प्रसाद जी अपनी पुस्तक जाति व्यवस्था के पृष्ठ ४०-४१ पर लिखते हैं कि -मगध में नन्द वंश के उद्भव के पूर्व शिशु नाग क्षत्रियों
का शासन था /इसी पुस्तक के पृष्ठ ६८-६९ में वे लिखते हैं कि आंध्र कुषाण के उपरांत
भारतीय इतिहास में अन्धयुग आता है / इसकी तमिश्रा को चीरकर मध्य भारत में भारशिव
नागों का उदय हुआ / वे प्राचीनकाल के क्षत्रिय वन्शोदय थे और समय समय पर बनने वाले नव क्षत्रियों के स्रोत थे / डा ,विद्याधर महाजन प्राचीन भारत का
इतिहास के पृष्ठ संख्या ५८२ पर लिखते हैं कि ,वर्तमान अधिकांश राजपूत भर और गोंड जैसी
देशी जातियों के वंशज हैं /
भारत का इतिहास [६००-१२०० ई ,] के पृष्ठ ३८५ -भारतीय इतिहास का पूर्व मध्य
युग में सत्यकेतु विद्यालंकार कहते हैं कि चंदेल ,गहडवाल आदि कतिपय राजपूत वंशों के विषय में यह मत प्रतिपादित
किया गया है कि वे गोंड ,भर आदि उन जनजातियों के वंशज थे ,जो भारत की मूल निवासी
थीं / कुछ लोगों का मत है कि भारत का नाम भी मूल जाति भर
के कारण पड़ा
/ पंडित राहुल सांकृत्यायन ने इश भावना को ''सप्तमी के बच्चे '' नामक पुस्तक की एक कहानी में व्यक्त किया है / अपनी पुस्तक साम्यवाद ही क्यों ? के पेज ५ [मनुष्य की उत्पत्ति
और विकास ] में राहुल जी भरों को आदि जातियों में मानते हैं /
डा , नर्मदेश्वर प्रसाद जी ने जिन भारशिव नागों
का उल्लेख किया है ,इनका रोचक इतिहास रहा है / वे पहले केवल भर थे /मिस्टर फ्लीट ने
अपनी पुस्तक गुप्त इन्स्क्रिप्सन में वाकाटक लेखकों के एक ताम्रपत्र का हवाला देते हुए ,लिखा है कि ''इन भारशिवों ने जिनके राजवंश का प्रारंभ इस प्रकार हुआ था --शिवलिंग
का भार अपने कन्धों पर उठा कर शिव को भलीभांति परितुष्ट किया था / उनका अभिषेक भागीरथी
के पव्वित्र जल से किया गया / उन्होंने अपने पराक्रम से राज्य प्राप्त करके दस अश्वमेध यज्ञों द्वारा अवभृथ स्नान किया था
/'' उक्त ताम्रपत्र से स्पष्ट है कि शिवलिंग का भार अपने कन्धों पर उठाने से इस वंश का नाम भारशिव पड़ा /
भारशिव /राजभरों के बारे में दिनांक १७-१०-१९७७ के स्वतंत्र भारत के अपने लेख ''भारशिव
और राजभर '' में अमरबहादुर सिंह ''अमरेश '' लिखते हैं कि कोई इन्हें भारत का मूल निवासी
, कोई भरवतिया जाति
के अहीरों तथा
कोई राजभरों से सम्बन्ध जोड़ता है / वे आगे कहते हैं
कि ''मेरा अपना विश्वास है कि ये भारशिव राजभर ही हैं जो आज अछूतों के स्तर के समझे जाते हैं
/ ये
लोग अपनी जाति के साथ अपने पुराने राजमोह को अब तक नहीं छोड़ पाए और गाजीपुर, बनारस ,जौनपुर तथा चौबीस परगना के भर अपने को राजभर कहते हैं
/ ये नागवंशी हैं / ये बहुत बहादुर तथा लड़ाकू होते थे / इनका प्रारंभिक जीवन
धार्मिक ,सदाचारी तथा सादा था / बाद में वे मदिरा पीने लगे / इसके लिए वे हौज बनवाते थे / वही प्रवृत्ति इनके विनाश का कारण बनी / कालांतर में ये अत्यंत विलासी भी हो गए /
जैसा कि ऊपर बताया गया है , भर नामक एक वीर जाति से चन्देल राजपूतों की उत्त्पत्ति हुई / १६ वीं सदी
तक ये राजपूत मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड पर राज्य करते रहे / कुछ विद्वानों
के मतानुसार भर जाति के
लोग जो कि कौशाम्बी
,प्रयाग तथा काशी के दक्षिणी भाग में स्थित थे , चंदेलवंशी राजपूत कहलाये
/ शेष राज्यों के ज्यों के त्यों रह गए / उत्तरी भारत के अधिकांश भाग पर उनका शासन
था / भरों के विषय में निम्न मत भी प्रासंगिक हैं ----;
[१] -मिस्टर थामसन कहते हैं कि वे अवध के वीर एवं कुशल शासक थे /
[२] -सरस्वती के संपादक पंडित देवीशंकर शुक्ल ने भरों को भारशिवों का वंशधर
माना है /
[३] -बी,ए , स्मिथ ने अपनी पुस्तक अरली हिस्ट्री आफ इंडिया में भर जाति को
प्राचीन क्षत्रिय माना है /
[४] -के,पी , जायसवाल का मत है कि भर नागों तथा भारशिवों के वंशज हैं
/
[५] -डा,हेनरी इलियट भर जाति को अत्यंत वीर ,पराक्रमी तथा उच्च वर्गीय मानते हैं /
[६] - डा, बी,ए , मानते हैं कि भर राजा कशी ,पाटलिपुत्र तथा अवध के कुशल शासक थे /बिहार शब्द भर शासक
द्वारा ही दिया गया है /
[७]- जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी का कथन है कि ११९४ ईस्वी में भर सरदारों ने
अवध पर अपना साम्राज्य स्थापित किया तथा पचास वर्षों तक कुशलता पूर्वक राज्य किया
/
अब बहराइच के भर शासक सुहेलदेव पर लौटते हैं जिन्हें विहिप पासी शासक बता रही है / भर राजा सुहेलदेव का जन्म १००९ ईस्वी
में बसंत पंचमी के दिन श्रावस्ती में हुआ था / इनके पिता बिहारीमल १०२० ईस्वी में श्रावस्ती पर शासन करते थे / बिहारीमल के चार पुत्र
सुहेलदेव , रूद्रमल ,बागमल व सहरमल थे / सुहेलदेव किशोरावस्था से ही पिता के साथ आखेट के लिए जाया करते
थे / उनकी प्रतिभा और शौर्य देख कर उनके पिता बिहारीमल अत्यंत प्रसन्न होते थे / इसलिए
१८ वर्ष की उम्र में ही १०२७ ईस्वी में बिहारीमल ने उन्हें श्रावस्ती का सम्राट घोषित
किया। शासन
व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने हेतु बिहारीमल
ने चन्देलवंश के गंड युवराज विद्याधर को शासन का मंत्री चुना /सुहेलदेव के अंगरक्षकों में सामंत
जगमनी, बलभद्र देव , तथा उनके अनुज रूद्र मल [ भूराय देव ] यहे / शेष २१ सामंत गण उनकी शासन व्यवस्था के अंग थे /
सुहेलदेव का साम्राज्य उत्तर में
नेपाल से लेकर दक्षिण में कौशाम्बी तक तथा पूरब में वैशाली से लेकर पश्चिम में गढ़वाल तक फैला था / भूरायचा का सामंत सुहेलदेव का छोटा भाई भूराय देव था , जिसने अपने
नाम पर भूरायचा दुर्ग इसका नाम रखा था / श्री देवकीप्रसाद अपनी पुस्तक'' राजा सुहेलदेव'' में लिखते हैं कि भूरायचा से भरराईच
और भरराईच से
बहराइच बन
गया / प्रोफ़ेसर
के,एल,श्रीवास्तव के ग्रन्थ'' बहराइच जनपद का खोजपूर्ण इतिहास'' के पृष्ठ ६१-६२ पर अंकित है --''इस जिले की स्थानीय रीति रिवाजों में सुहेलदेव पाए जाते हैं / बहराइच के
इतिहास की घटनाओं की गणना की
तिथि हमें सुहेलदेव के शासन काल से मिलती है
/ अमृतलाल
नागर ''ग़दर के फूल '' के पृष्ठ ८९ में बहराइच के बारे में लिखते हुए कहते हैं कि बहराइच
का शुद्ध नाम भरराइच है / भरों की पहेली आजतक किसी इतिहासकार ने नहीं
सुलझाई ,जबकि बहराइच का ऐतिहासिक महत्त्व भरों ने
खूब बढाया / वे
आगे लिखते हैं कि ११ वीं शताब्दी में सैयद सालार मसूद नामक मुस्लिम फ़क़ीर ने भारत पर
आक्रमण किया / यह सुल्तान महमूद गजनवी का भांजा माना जाता है / जेहाद यानी धर्म युद्ध की भावना से इस देश को खूब रौंदा था / अवध में मैं जानता हूँ कि सैयद सालार कई पीढ़ियों के लिए आतंक का प्रतीक बन गया था। उसने अयोध्या सहित अनेक स्थानों का नाश किया / अंत में सन १०३४
ईस्वी में उसने भर राजा सुहेल देव के हाथों मृत्यु पाई /''
सेंसेस आफ
इंडिया १८९१ के वाल्यूम १६ पार्ट १ के पेज २१७ में डी ,सी, बैली ने लिखा है कि
- ''यह कहने के लिए अधिक होगा कि पूजा के केंद्र में सैयद सालार मसौदी गाजी , महमूद
सबक्ताजिन की बहन का पुत्र जो कि १०३३ में गोंडा के भर , थारू या राजपूत राजा द्वारा
नेतृत्व करते समय बहराइच के समीप हराया तथा मारा गया था / भर
शासक सुहेलदेव की मृत्यु १०७७ ईस्वी में किसी बीमारी के फलस्वरूप
हुई /''
इस
प्रकार अधिकतर प्रख्यात विद्वानों ने अपने अध्यन के फलस्वरूप सम्राट सुहेलदेव को भर
शासक माना है / किसी भी विद्वान् या इतिहासकार ने कभी भी उनके पासी होने का उल्लेख
नहीं किया है / काशीप्रसाद जायसवाल ने अपनी पुस्तक ''अन्धकार युगीन भारत '' में भरों को भारशिव वंश का क्षत्रिय
माना है / अर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के वाल्यूम १ पेज ३२९ में लिखा है की '' राजा
सुहेलदेव इसी वंश के थे / कहीं कहीं उनका नाम सुह्रिध्वज भी लिखा गया है /''
स्पष्टतः राजा सुहेलदेव भर
शासक थे / कुछ लोगों ने भर और पासी को एक ही माना है / हालाँकि कालांतर में भरों व पासियों का रहन सहन उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति लगभग समान हो गई थी लेकिन ऐसी समानता से जातियां समान नहीं हो जातीं / भारतीय संविधान की दृष्टि में भी ये दोनों जातियां भिन्न
है / संविधान ने पासियों को अनुसूचित जाति के अंतर्गत रखा है / जबकि १७ सितम्बर १९५८ को भर जाति
को भारतीय संविधान के अंतर्गत जी,ओ, नंबर १३१४ / xxvi /53 के आधार पर
पिछड़ी जाति का
घोषित किया गया है / हालाँकि पहले कहा गया है की भर एक बहादुर उच्च वर्णीय जाति थी / फिर इसे
पिछड़ी जाति के अंतर्गत रखे जाने पर आपत्ति हो सकती है / लेकिन समय
और परिस्थितियों के अनुकूल न रहने के कारण इस जाति का आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर
पर पतन हो गया था / कालांतर में इसे अपराध और जरायम पेशों के लिए भी बाध्य
होना पड़ा था / अतः भरों के
उत्थान के लिए संविधान का
सहारा एक मात्र विकल्प था
/
संविधान में भी भर और पासियों के
लिए अलग अलग व्यवस्थाएं हैं , फिर क्यों विभिन्न राजनैतिक दल भर शासकों को पासी शासक
बनाने व बताने
पर तुले हुए हैं / तुष्टिकरण की राजनीति और भर समाज का अपनी जाति के प्रति
कम मोह से उत्पन्न जातिगत एकता का अभाव इन
राजनैतिक पार्टियों को साहस प्रदान करता है कि वे भरों के गौरवशाली अतीत से खिलवाड़ करें / येन केन प्रकारेण वोट बैंकों
को अपने पक्ष में कर लेने की स्वार्थ लिप्सा के कारण ही ऐसा हो रहा है
/ तभी
तो प्रदेश में काबिज भाजपा ,बसपा गठबंधन के सहकारिता मंत्री श्री आर ,के,
चौधरी भी अपनी पुस्तक ''पासी साम्राज्य '' में भर शासकों को भर -पासी शासक बताते
हैं / शायद उन्हें नहीं मालूम की संविधान में भर व पासी जातियों को एक नहीं माना
गया / यदि मंत्री महोदय की बात मान भी ली जाये
तो क्या वे भरों को पासियों की तरह अनुसूची जाति में
शामिल करवाने का पावन प्रयास करेंगे ? इतना नैतिक
साहस हमारे जन प्रतिनिधियों में नहीं होता है / तभी तो सस्ती लोकप्रियता एवं राजनैतिक
लाभ पाने के लिए ये राजनैतिक दल अकाट्य
ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ने -मरोड़ने से नहीं चूकते /
[ प्रत्येक सच्चे राजभर भाई का परम
कर्तव्य है की वे इस लेख को अधिक से अधिक शेयर करें --निवेदक --आचार्य शिवप्रसाद सिंह
राजभर ''राजगुरु'']
राजभर बहुजन हैं राजभर से ही सारे ओबीसी एससी एसटी बने हैं। ब्राह्मणों ने बर्बाद कर दिया । ओबीसी एससी एसटी हिंदी नही हैं। हम सब श्रमण संस्कृति वाले हैं ।
जवाब देंहटाएंआप ज्ञान सौ तोपों की सलामी,,,, बहुत नौटंकी कर रहे हैं 😂😂😂😂😂
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